Wednesday, July 15, 2009

समय...

याद है मुझे,
जब मैं छोटी बच्ची थी,
झूठी दुनिया की
भीड़ में, भोली-भाली
सच्ची थी,
तब भी सुबह होती थी
शाम होती थी,
तब भी उम्र यूँ ही
तमाम होती थी,
लगता था पल बीत रहे हैं
दिन नहीं बीता है
मैं जीतती जा रही हूँ,
वक्त नहीं जीता है,
पर,अब बाज़ी उलटी है पड़ी,
वक्त भाग रहा है,और मैं हूँ खड़ी
वक्त की रफ़्तार का
नही दे पा रही हूँ साथ,
इस दौड़ में न जाने कितने
छूटते जा रहे हैं हाथ
अब समय मुझे दीखाने लगा अंगूठा
कहता है, तू झूठी,
तेरा अस्तित्व भी झूठा
जब तक तुम सच्चे हो
तुम्हारा साथ दूंगा
जब कहोगे,जैसा कहोगे,
वैसा ही करूँगा
अच्छाई की मूरत बनोगे तो
समय से जीत पाओगे
वर्ना दुनिया की भीड़ में
बेनाम खो जाओगे
आज भी समय जा रहा है भागे
सदियों पुरानी सच्चाई की मूरत
अब भी हैं आगे
ये वो हैं जिन्होंने
ता-उम्र बचपन नहीं छोडा है
वक्त ने इन्हें नहीं,
इन्होने वक्त को मोड़ा है
सोचती हूँ
कैसे लोग बच्चे रह जाते हैं
झूठ की कोठरी में रह कर भी
सच्चे रह जाते हैं,
अभी तो मुझे
असत्य की नींद से जागना है
फिर समय के
पीछे-पीछे दूर तक
भागना है ....

28 comments:

  1. ये वो हैं जिन्होंने
    ता-उम्र बचपन नहीं छोडा है
    वक्त ने इन्हें नहीं,
    इन्होने वक्त को मोड़ा है
    सोचती हूँ
    कैसे लोग बच्चे रह जाते हैं

    kya bat hai

    bahut sunder khyaal layee hai aap
    acha laga

    ReplyDelete
  2. Phir ekbaar kahungee, lagta hai,ye alfaaz aapke hain, jo mere manse nikale mehsoos hote hain..!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://fiberart-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://shama-kahanee.blogspot.com

    http://shama-baagwaanee.blogspot.com

    http://lalitlekh.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. वक्त ने इन्हें नहीं,
    इन्होने वक्त को मोड़ा है
    सोचती हूँ
    कैसे लोग बच्चे रह जाते हैं

    kyaa baat hai...
    kyaa falsafaa hai../

    ReplyDelete
  4. जब,जब पुरानी तस्वीरे
    कुछ यांदें ताज़ा करती हैं ,
    हँसते ,हँसते भी मेरी
    आँखें भर आती हैं!

    वो गाँव निगाहोंमे बसता है
    फिर सबकुछ ओझल होता है,
    घर बचपन का मुझे बुलाता है,
    जिसका पिछला दरवाज़ा
    खालिहानोमें खुलता था ,
    हमेशा खुलाही रहता था!

    वो पेड़ नीमका आँगन मे,
    जिसपे झूला पड़ता था!
    सपनोंमे शहज़ादी आती थी ,
    माँ जो कहानी सुनाती थी!

    वो घर जो अब "वो घर"नही,
    अब भी ख्वाबोमे आता है
    बिलकुल वैसाही दिखता है,
    जैसाकी वो अब नही!

    लकड़ी का चूल्हाभी दिखता है,
    दिलसे धुआँसा उठता है,
    चूल्हा तो ठंडा पड़ गया
    सीना धीरे धीरे सुलगता है!

    बरसती बदरीको मै
    बंद खिड्कीसे देखती हूँ
    भीगनेसे बचती हूँ
    "भिगो मत"कहेनेवाले
    कोयीभी मेरे पास नही
    तो भीगनेभी मज़ाभी नही...

    जब दिन अँधेरे होते हैं
    मै रौशन दान जलाती हूँ
    अँधेरेसे कतराती हूँ
    पास मेरे वो गोदी नही
    जहाँ मै सिर छुपा लूँ
    वो हाथभी पास नही
    जो बालोंपे फिरता था
    डरको दूर भगाता था...

    खुशबू आती है अब भी,
    जब पुराने कपड़ों मे पडी
    सूखी मोलश्री मिल जाती
    हर सूनीसी दोपहरमे
    मेरी साँसों में भर जाती,
    कितना याद दिला जाती ...

    नन्ही लडकी सामने आती
    जिसे आरज़ू थी बडे होनेके
    जब दिन छोटे लगते थे,
    जब परछाई लम्बी होती थी...

    यें यादे कैसी होती?
    कडी धूपमे ताजी रहती है !
    ये कैसे नही सूखती?
    ये कैसे नही मुरझाती ?

    ये क्या चमत्कार है?
    पर ठीक ही है जोभी है,
    चाहे वो रुला जाती है,
    दिलको सुकूँ भी पहुँचाती....

    बातेँ पुरानी होकेभी,
    लगती हैं कलहीकी
    जब पीली तसवीरें,
    मेरे सीनेसे चिपकती हैं,
    जब होठोंपे मुस्कान खिलती है
    जब आँखें रिमझिम झरती हैं
    जो खो गया ,ढूँढे नही मिलेगा,
    बात पतेकी मुझहीसे कहती हैं ....

    शमा

    Ye aapke liye..!Ek puranee rachnaa...!

    ReplyDelete
  5. ता-उम्र बचपन नहीं छोडा है
    वक्त ने इन्हें नहीं,
    इन्होने वक्त को मोड़ा है

    Adbhut Panktiyaan hai. Bahut hee prernaa daayee. Badhaai

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सुंदर कविता.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  7. sahi ab baji ulti hai,waqt bhagta hai,behad sunder kavita.

    ReplyDelete
  8. पीछे-पीछे दूर तक
    भागना है ....
    ========
    और इस भागमभाग मे बहुत कुछ छूटता जाता है.. और जो छूटता है शायद सबसे अमूल्य होता है.
    बहुत अच्छी रचना

    ReplyDelete
  9. जीवन का सजीव चित्रण।
    सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
  10. सबकी टीप पढ़ी..बहुत सजीव चित्रण...बहुत बेहतरीन रचा है आपने भावों को पूरा जीते हुए.

    ReplyDelete
  11. मैं कुछ भी कहूंगा, तो सूर्य को दीया दिखाने वाली बात होगी।

    ReplyDelete
  12. सत्य सामने खडा है पर हम उस तक हाथ नही बढा रहे कभी हाथ उठता भी है तो ढेरो प्रलोभन हमारे बीच चमककर खडे हो जाते है ठीक लक्ष्मन रेखा कि तरह बस फर्क ये रह जाता है कि उस समय सच रेखा के अन्दर था और झूठ रेखा के बाहर .और आज हम रखा के अन्दर बाहर दोनों तरफ झूठ को खडा पाकर मूक बने खडे है |
    बहुत अच्छी रचना खुद से सत्य बोलकर जीने कि कोशिश |
    बधाई

    ReplyDelete
  13. Wonderful creation!

    Really liked it... Innovative thoughts.

    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

    ReplyDelete
  14. bahut khoob

    -Sheena
    http://sheena-life-through-my-eyes.blogspot.com
    http://hasya-cum-vayang.blogspot.com/
    http://mind-bulb.blogspot.com/

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर लिखा है
    टिप्पणियों में आई शमा जी कि कविता भी लाजवाब है, आपसे उनके लगाव ने हमें भी कविता पढ़वा दी है.

    ReplyDelete
  16. आपने भावों ke saath likhi बहुत अच्छी रचना hai....... शमा जी कि कविता भी लाजवाब है

    ReplyDelete
  17. एकऐसी विचार को व्यक्त करी है जो बिल्कुल कोरी है ......ऐसा भी होता है जिन्दगी मे कुछ लोग बिल्कुल अन्धेरे मे मे ही रह जाते है बिल्कुल निश्छल निष्कपट......बहुत ही सुन्दर

    ReplyDelete
  18. सोचती हूँ
    कैसे लोग बच्चे रह जाते हैं
    झूठ की कोठरी में रह कर भी
    सच्चे रह जाते हैं,
    अभी तो मुझे
    असत्य की नींद से जागना है
    फिर समय के
    पीछे-पीछे दूर तक
    भागना है ....

    कितनी गंभीर बात कितनी सहजता से कह दी

    लाजवाब !!

    ReplyDelete
  19. अभी तो मुझे
    असत्य की नींद से जागना है
    फिर समय के
    पीछे-पीछे दूर तक
    भागना है ....

    bahut achchha likha hai |

    ReplyDelete
  20. अदा जी......
    समय और जिंदगी का यही नाता है............ और समय के साथ चलाना या भागना इसी का हिस्सा है...... सुन्दर रचना लिखी है आपने.......

    ReplyDelete
  21. bahot khubsurati se aapne wakht uske haalaat ka sajeev chitarn apne nazm me kari hai bahot bahot badhaayee... kaise log bachche rah jaate hai ... kyaa baat hai bahot khub..



    arsh

    ReplyDelete
  22. ये वो हैं जिन्होंने
    ता-उम्र बचपन नहीं छोडा है
    वक्त ने इन्हें नहीं,
    इन्होने वक्त को मोड़ा है
    सोचती हूँ
    कैसे लोग बच्चे रह जाते हैं
    bahut accha likha hai..

    ReplyDelete
  23. अपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

    ReplyDelete
  24. "अभी तो मुझे
    असत्य की नींद से जागना है
    फिर समय के
    पीछे-पीछे दूर तक
    भागना है .... "

    बहुत उम्दा ख्याल है।

    ReplyDelete