tag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post8713582421033502263..comments2024-03-13T13:33:28.274+05:30Comments on काव्य मंजूषा: स्त्री देह, ज़ेब से झाँकते हुए नोट की तरह है....!स्वप्न मञ्जूषा http://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-28395472130636475262013-04-17T19:12:25.122+05:302013-04-17T19:12:25.122+05:30अभूत =बहुत अभूत =बहुत स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-21611245394553752132013-04-17T19:11:07.440+05:302013-04-17T19:11:07.440+05:30२. बहन को अधिकार देने की बात पर बहन ही का विरोध उस...२. बहन को अधिकार देने की बात पर बहन ही का विरोध उसकी मेंटल कंडिशनिंग का परिणाम क्यों नहीं माना जाता ? - क्या हम उन आतंकवादियों को "नार्मल" कहते हैं जो बचपन से हुई मेंटल कंडिशनिंग के कारण बेकसूरों को मारते हैं ? <br /><br />शिल्पा,<br />अभूत अच्छे पॉइंट्स बताये तुमने। <br />हमारे समाज में, बहन/बेटी को अपना बेटी अधिकार माँगना ही बहन/ के लिए शर्म की बात मानी जाती है, जैसे अधिकार नहीं मांग कर वो कोई पाप कर रहीं हों। ये इतनी बुरी बात मानी जाती है, समाज में कि बहन/बेटी के पास इस तथाकथित अपराध से बचने का एक ही उपाय होता है, अधिकार लेने से इनकार कर देना । सही कह रही हो शिल्पा ये पूरी तरह मेंटल कंडिशनिंग ही है और कुछ नहीं। नारी को इससे बाहर आना ही होगा।स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-22367008118100526472013-04-17T11:41:35.090+05:302013-04-17T11:41:35.090+05:30मुझे समझ नहीं आता कि
१. हर स्त्री अधिकार की बा...मुझे समझ नहीं आता कि <br /><br />१. हर स्त्री अधिकार की बात को कपड़ों से जोड़ कर घुमा क्यों दिया जाता है ?<br /><br />२. बहन को अधिकार देने की बात पर बहन ही का विरोध उसकी मेंटल कंडिशनिंग का परिणाम क्यों नहीं माना जाता ? - क्या हम उन आतंकवादियों को "नार्मल" कहते हैं जो बचपन से हुई मेंटल कंडिशनिंग के कारण बेकसूरों को मारते हैं ? <br /><br />३. स्लट वाक और टोपलेस प्रदर्शन के पीछे की डिमांड को क्यों इगनोर किया जाता है सिर्फ प्रदर्शन के तरीके पर संकुचित रह कर ? यह क्यों नहीं समझा जाता कि यदि ये अन्याय न हों तो इन सब तरीकों/प्रदर्शन की हम स्त्रियों को आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी ? <br /><br />अनेक प्रश्न हैं - लेकिन जो इन प्रश्नों के सही उत्तर जानते हैं - वे वैसे ही स्त्री समस्याओं को समझ कर उन्हें सुलझाने में हमारे साथ ही हैं । और जो जानते हैं कि उनके विरोध गलत हैं - वे हमारे इन प्रश्नों को भी मुद्दे से भटकाने के तरीके खोज ही लेंगे । Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-14039943838562637062013-04-17T11:27:59.550+05:302013-04-17T11:27:59.550+05:30haan - yahi tareeka theek ho shayad ...haan - yahi tareeka theek ho shayad ...Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-46320893181772020762013-04-17T01:47:51.793+05:302013-04-17T01:47:51.793+05:30शिल्पा,
उनके कान के पास इतने जोर का भोंपू बजाना है...शिल्पा,<br />उनके कान के पास इतने जोर का भोंपू बजाना है कि बहरे ही हो जाएँ। क्योंकि सुना है जो बहरे हो जाते हैं, वो गूंगे भी हो जाते हैं। स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-26237664446176319002013-04-17T01:30:15.898+05:302013-04-17T01:30:15.898+05:30विश्वास है हमको ऐसा ही होगा
विश्वास है हमको ऐसा ह...विश्वास है हमको ऐसा ही होगा <br />विश्वास है हमको ऐसा ही हुआ होगा स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-29997570573899454532013-04-17T01:03:32.938+05:302013-04-17T01:03:32.938+05:30"वो आपकी बहुत ज्यादा इज्जत करते हैं, और इतना ..."वो आपकी बहुत ज्यादा इज्जत करते हैं, और इतना प्रेम करते है की उन्हें आपकी गलती नज़र ही नहीं आयी।"<br /><br />का दीप बाबू ! इसकी संभावना का कम लगती है आपको :)<br />ख़ैर, मुझे जो लगा वो मैंने लिखा है, आपने अपना पक्ष दिया बहुत अच्छा लगा। कुछ-कुछ बातें चुभीं थीं मुझे जैसे, जेब से बाहर नोट, भविष्य दिखाई देता है इत्यादि। <br /><br />आपको शायद मालूम हो फेमेन तो सिर्फ टॉपलेस प्रदर्शन कर रही है लेकिन हमारी बहुत प्यारी सखी रश्मि ने या जानकारी दी है, कुछ अंश यहाँ दे रही हूँ <br /><b>इस तरह के प्रदर्शन हमारे देश में 2004 में ही हो चुके हैं . जब सेना द्वारा एक लड़की 'मनोरमा ' के कथित बलात्कार और ह्त्या के विरोध में मणिपुर की साठ वर्ष की उम्र तक की महिलाओं ने 'Mothers of Manorma' के नाम से आर्मी हेडक्वार्टर के सामने वस्त्रहीन होकर प्रदर्शन किया था </b><br /><br />विरोध दिखाने का अपना-अपना तरीका है, विरोध अक्सर जिस बात की ज़बरदस्ती की जाती है उसके उल्टा ही काम करके दिखाया जाता है। जैसे किसी से कहा जाए पढो, अगर उसे विरोध करना है तो वो नहीं पढ़ के करेगा। इस केस में मुस्लिम लड़कियों को इतना ज्यादा कपड़ों, पर्दों से लाड किया गया है कि, उनके शरीर का कोई हिस्सा बाहर नहीं होता, सिवाय आँखों की खिड़की के। यह सरासर ज़ुल्म है, इसका प्रतिकार वो अंग उघाड़ कर कर रहीं हैं। उनका मकसद अगर आप समझें तो उनका साथ देना चाहिए। हो सकता है कि यह कुछ देर की असहजता है लेकिन इसके करने से अगर जीवन भर की सहजता मिलती है तो मैं इसके साथ हूँ।<br /><br />बाकी रही बात, लड़कियों के पहनावे की, हर जेनेरेशन में ये मुद्दा रहा है। मुझे याद है, फिल्मों में मुमताज़ बहुत टाईट कुरता पहनती थी, इतना की चलना दूभर हो जाए, लोगों ने उसे एक्सेप्ट कर लिया, हमलोगों को बेलबाटम, स्लैक्स नहीं पहनने दिया जाता था, आज ये बहुत नार्मल ड्रेस है। कोई देखता भी नहीं है। फ़ैशन आते जाते रहते हैं। ये आज का फैशन है और ये कल चला जाएगा। कुछ और आ जाएगा। आज कल ही नया फैशन चल ही पड़ा है, अनारकली कुर्ता, जो मुग़ल कालीन परिधान लगता है। दुनिया बहुत जल्दी ऊब जाती है ऐसी बातों से। आज आप गौर कर रहे हैं, कल आप ध्यान ही नहीं देंगे। परसों आप बैठ के सोचेंगे यार मैं भी कितना बेवकूफ था। ये कोई इतनी बड़ी बात तो नहीं थी। <br /><br />रही बात आपकी अगली पोस्ट की तो बस हम इंतज़ार कर रहे हैं। लिखिए कुछ ऐसा कि इस बार ब्लॉग जगत में भूचाल आ ही जाए :) मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं! <br />स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-16016361244236855832013-04-17T00:30:03.946+05:302013-04-17T00:30:03.946+05:30
अरे वाह रश्मि,
ई तो बहुते बढ़िया बात हुई है, तुम ...<br />अरे वाह रश्मि,<br />ई तो बहुते बढ़िया बात हुई है, तुम भी रंचियार, हम भी रंचियार, का बात है !<br />अब लड़कियों को दहेज़ का बहिष्कार हर हाल में करना होगा। इस बीमारी को जड़ से ख़तम करने का यही एक तरीका है, लड़कियों को उनका सम्मान भी मिलेगा और वो सबल भी होंगी। इतना ही नहीं दहेज़ के नाम पर उनके साथ जो पाशविकता होती है वो भी ख़तम होगी। माँ-बाप पर जो अलग बोझ होता है वो भी समाप्त होगा, लड़कियों को सही मायने में धन मिलेगा, ये टी वी फ्रिज पलंग जैसी चीज़ें नहीं, जो लड़कियों का संबल नहीं बन सकते। मुझे तो इस रास्ते चलने से सब कुछ भला ही होता नज़र आता है। लेट्स डू इट :)स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-81533637508203496262013-04-17T00:21:50.476+05:302013-04-17T00:21:50.476+05:30शोभा जी,
आपका स्वागत है !
अँधेरे में रौशनी की तरह ...शोभा जी,<br />आपका स्वागत है !<br />अँधेरे में रौशनी की तरह लगी है आपकी टिप्पणी। इस जानकारी के लिए आपका हृदय से धन्यवाद!स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-22249418785986501672013-04-17T00:19:44.777+05:302013-04-17T00:19:44.777+05:30मोनिका जी,
एकदम परफेक्ट बात कही आपने। लेकिन मैं बह...मोनिका जी,<br />एकदम परफेक्ट बात कही आपने। लेकिन मैं बहुत आशान्वित हूँ। हम सभी जानते हैं रास्ता कठिन है, लेकिन यही क्या कम है कि रास्ता तो है ! समाज बदलेगा भी और इस बात को स्वीकारेगा भी, देर हो सकती है लेकिन अंधेर नहीं !स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-76175882664963647302013-04-16T22:57:49.981+05:302013-04-16T22:57:49.981+05:30समाज और सभ्यतायें जड़ नहीं होती, अवसरानुसार परंपरा...समाज और सभ्यतायें जड़ नहीं होती, अवसरानुसार परंपरायें-प्रथायें बदलती रहती हैं। इनके नियमन के लिये ही कानून बनाये जाते हैं। वर्तमान में बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार प्रेक्टिस में उतना नहीं है लेकिन कानून तो बन ही चुका है और कानून का इस्तेमाल होने भी लगा है। साधारण हिन्दु परिवारों में अब एक या हद से हद दो संतान होती हैं, एक संतान वाली जगह पर इस कानून का औचित्य ही नहीं और जहाँ एक से अधिक हैं तो भी आदमियों को इससे क्या फ़र्क पड़ेगा? अगर अभी के चलन के विपरीत पिता की संपत्ति में उसकी बहन हिस्सा बांटेगी तो उसकी पत्नी अपने भाई से हिस्सा बाँटेगी। हाँ, इस तरीके से संपत्ति के रख रखाव, सुपरविज़न जैसी नई समस्यायें जरूर उठेंगी। लेकिन इस अधिकार से स्त्री सबल होती है तो जरूर ऐसा ही होना चाहिये।<br /><br />ऐसा नहीं है कि इस बारे में आदमी सोचते नहीं हैं। एक बार अपनी बहन से मिलने गया था तो हिस्सा देने की बात करते ही जिसे सबल होना था, वो बहन ही रोने बैठ गई और हमारे बहनोई साहब भी बस ऐसे हैं कि हमें ही डाँट डपट कर बैठा दिया। <br />संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-83511894627757898132013-04-16T22:51:05.871+05:302013-04-16T22:51:05.871+05:30अदा जी माफ़ी चाहूँगा की इस पोस्ट पर पहली टिपण्णी मे...अदा जी माफ़ी चाहूँगा की इस पोस्ट पर पहली टिपण्णी मेरी होनी चाहिए थी पर एसा हो न पाया। अपने मेरी पोस्ट का लिंक दिया इसके लिए धन्यवाद पर शायद यहाँ के किसी भी टिप्पणीकर्ता ने मेरी पोस्ट नहीं पढ़ी अन्यथा कोई तो एक होता ( हाय !!!!) जो ये कहता की अदा जी अपने बड़ी बेदर्दी से जिस बन्दे को पीटा उसने अपनी पोस्ट में स्त्री देह को जेब से झाकते हुए नोटों की तरह तो कहीं नहीं समझा। या तो लोग मेरी बात समझ नहीं सके (जिसकी मैं समझता हूँ की संभावना बहुत ज्यादा है)या फिर वो आपकी बहुत ज्यादा इज्जत करते हैं, और इतना प्रेम करते है की उन्हें आपकी गलती नज़र ही नहीं आयी।<br />अदा जी, फेमेन को लेकर मुझे नहीं लगता की मेरे अलावा किसी दुसरे व्यक्ति ने कहीं कोई पोस्ट लगई हो अतः सभी निश्चिन्त रहें ब्लॉगजगत में कहीं कोई भूकंप नहीं आया। फेमेन की हरकतों को लेकर सिर्फ मुझे ही खुजली हुयी है और ये खुजली तब की है जब slut walk को लेकर वास्तव में अपने ब्लॉग जगत में काफी हो हल्ला हुआ था। उस वक्त मैं इन संगठनों की थोथी बातों के खिलाफ अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाया था। फेमेन का जिहाद Slut Walk जैसा ही था इसलिए इस प्रकार के सभी विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ मैंने अपनी बात रखी। ये प्रदर्शनकारी नारी अधिकारों की बात को एकदम गलत तरीके से सामने रखते हैं। मुझे लगता है की इस प्रकार के बेहूदा प्रदर्शनों से नारी आन्दोलन अपने मूल उद्देश्य से भटक जाता है। मेरी नज़र में ये लोग वैसे ही उपद्रवकारी हैं जैसे की दिल्ली में अन्ना के आन्दोलन में घुस आये थे और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान कर रहे थे। असाम रायफल हेडक्वाटर पर हुए प्रदर्शन की तुलना इन प्रदर्शनों से नहीं की जा सकती। कपडे उतर देने भर से दोनों में समानता नहीं हो जाती। अपनी बात को समझाने के लिए मुझे काफी लिखना पड़ेगा जो फ़िलहाल मेरे बस में नहीं। <br /><br />फ़िलहाल में एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की जिस स्त्री देह की आप बात कर रही हैं और जो पोस्ट पर लगे फोटोग्राफ में नज़र आ रही है, अपने नोट वाले उदहारण में,, मैं उस स्त्री देह की कही बात ही नहीं कर रहा था। मैं जिस स्त्री देह की बात कर रहा था वो टाईट ब्लाउज पहनती है ताकि deep cleavage दिखाई पढ़े। वो टाईट पेंट या जींस पहनती है ताकि पीछे से देखने पर नितम्बों की गोलाई और सामने से camel toe स्पष्ट नज़र आए। अपनी इन चीजों की असेट्स के रूप में नुमाइश करने के बाद ये स्त्री कहती है की मुझे दिन या रात में कहीं भी बेरोकटोक घुमाने की आजादी चाहिए। मुझे लगता है की मेरी बात अब कुछ स्पष्ट हुई होगी। नहीं तो शायद फिर कोशिश करूँगा।<br /> <br />इसके बाद अपनी अगली पोस्ट में, मैं नारी के समानता के अधिकार पर अपने कुछ विचार रखना चाहता था जिनमें से बहुत सी बातें अपने कह ही दी हैं पर फिर भी स्त्री और पुरुष के बीच समानता किन मुद्दों पर होनी चाहिए यह में थोड़े समय में जरुर लिखूंगा। आशा है आप यूँ ही मार्गदर्शन करेंगी। VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-18877513066862791842013-04-16T20:50:18.714+05:302013-04-16T20:50:18.714+05:30बेटियों को सबल बनाने की पहली कोशिश उसके अपने घर ...बेटियों को सबल बनाने की पहली कोशिश उसके अपने घर से ही होनी चाहिए...बिल्कुल सही बात। इसके लिए ये भी जरूरी है कि दहेज प्रथा समाप्त हो क्योंकि कई अभिभावकों का मानना है कि बेटियां अपना हिस्सा दहेज के रूप में ले ही लेती हैं, उन्हें और कितना दिया जाए.....<br />रही प्रदर्शन की बात....तो जो लोग स्त्री देह को जेब से झांकते नोटों की तरह देखते हैं, उनकी मानसिकता पर तरस ही आता है। ये अपने नजरिये और सोच ही की बात है।<br />मुझे अच्छा लगा ये जानकर की आप मेरे ही शहर की हैं...और यकीनन...अब भी देहातों में ब्लाउज का उतना चलन नहीं है। रश्मि शर्माhttps://www.blogger.com/profile/04434992559047189301noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-53327695248747355022013-04-16T20:26:59.800+05:302013-04-16T20:26:59.800+05:30अदाजी , आपको ये जानकर ख़ुशी होगी कि दाउदी बोहरा सम...अदाजी , आपको ये जानकर ख़ुशी होगी कि दाउदी बोहरा समुदाय में परम्परा से बेटियों को दहेज़ न दे कर सम्पत्ति में हिस्सा मिलता है. ये समुदाय मुख्यतया मुंबई, गुजरात और कुछ अन्य स्थानों पर रहता है और इस्लाम धर्म को मानता है. शोभाhttps://www.blogger.com/profile/12010109097536990453noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-57152268605090912542013-04-16T16:29:01.165+05:302013-04-16T16:29:01.165+05:30मैंने कहा न कि बेटी के लिए वो हर संभव मदद करेंगे ज...मैंने कहा न कि बेटी के लिए वो हर संभव मदद करेंगे जिसमें उन्हें अडचन नहीं है लेकिन संपत्ति में हिस्सा देते हुए उन्हें अपना स्वार्थ देखना होगा जब तक वो बेटों पर आश्रित है ।हाँ कुछ बेटियाँ मदद जरूर करती हैं पर स्थाई रूप से अभी भी अभिभावकों को बेटों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।कुछ उदाहरणों के बल पर तो मैं भी कह सकता हूँ कि बेटियों को संपत्ति में हिस्सा दिया जाने लगा है।और कानून जिसके लिए बना है उसे ही इसका प्रयोग करना चाहिए।वैसे जहाँ तक मुझे पता कानूनन तो पिता अपनी संपत्ति किसीके भी नाम कर सकता है पर बेटियों को अब खुद अपने हक के लिए आवाज उठानी चाहिए।बहुत से पिता भाई मान जाएँगे तो कुछ झगड़ा करेंगें तो वह तो अभी भी हर घर में बँटवारे के समय होता ही है।हाँ ये जरूर अंतर आएगा कि अब दो बहनों में भी झगड़ा हो सकता है(अभी भी होता है पर छोटे कारणों से)।पर पहल तो बेटियों को ही करनी होगी वर्ना वही चलता रहेगा जैसा अब तक चलता आया है।वैसे आपका सवाल मुझ पर लागू नहीं क्योंकि मेरी कोई बहन नहीं पर हाँ यदि होती तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती यदि मेरे पिता अपनी पूरी संपत्ति भी उसके नाम कर देते ।राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-15893176485629332552013-04-16T09:44:24.707+05:302013-04-16T09:44:24.707+05:30bravo rashmi
very balanced post swapna.
i reall...bravo rashmi<br /><br />very balanced post swapna. <br /><br />i really don't understand WHY these things need to be explained to people ? do they REALLY not know that their views are highly biased ? <br /><br />if they do know and they are acting asleep - you can never wake them up - because it is not POSSIBLE to awaken people who are already awake but act asleep ..... :(Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-89662663249407203002013-04-16T01:56:24.518+05:302013-04-16T01:56:24.518+05:30ये अधिकार मिलना सही मायने में उन्हें सशक्त करना हो...ये अधिकार मिलना सही मायने में उन्हें सशक्त करना होगा ..... पर दुखद बात ये कि गोदियाल जी कि टिप्पणी के अनुसार जहाँ सरकर ही यह न्यायसंगत कार्य नहीं कर रही वहां परिवारों से क्या आशा रखी जाय , और सामाजिक परिवेश तो शायद यह बदलाव स्वीकार ही न कर पाए , उम्दा विवेचन <br /> डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-80345831209761740222013-04-15T21:56:46.073+05:302013-04-15T21:56:46.073+05:30समर्थन के लिए धन्यवाद अरविन्द जी !समर्थन के लिए धन्यवाद अरविन्द जी !स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-82089309869711935592013-04-15T21:55:51.077+05:302013-04-15T21:55:51.077+05:30Bravo रश्मि,
'Mothers of Manorma' का तुमन...Bravo रश्मि,<br /><br />'Mothers of Manorma' का तुमने इतना बढ़िया उदहारण दिया की क्या कहूँ ! <br />ये बिलकुल सच है, ऐसे आन्दोलन बेवजह नहीं होते, इनके पीछे आक्रोश का ज्वालामुखी ही होता है। जब नारियाँ ऐसे ड्रास्टिक मेसर्स लेतीं हैं, तो कल्पना करना चाहिए कि फ्रस्ट्रेशन की सीमा क्या होती है ? कुछ समय पहले अमेरिका में एक नववधू को शादी से पहले ही उसके पूर्व प्रेमी ने गोली मार दी थी, जिसे उसने बहुत पहले ही छोड़ दिया था। तब उसकी हत्या के आक्रोश में नारियों ने दुल्हन के परिधान में प्रदर्शन किया था। असहयोग,प्रतिकार के अपने अपने सिम्बल होते हैं, और उनको बताने का अपना तरीका। आन्दोलन, प्रदर्शन, सिम्बल को उसी तरीके से लेना चाहिए, आख़िर ऐसा क्यों किया जा रहा है? क्या वजह है ? उसका कारण जानना ज्यादा ज़रूरी है, बनिस्पत इसके कि स्त्री देह को ज़ेब से झाँकता हुआ नोट कहा जाए। ये तो वैचारिक बैंकरप्सी है।<br />सभी माओं को इस मामले में खुद से वादा करना होगा, कुछ भी हो जाए अपनी बेटी-बहुओं को उनका अधिकार दिलवा कर रहेंगी। मैंने तो ये वादा कर लिया है, खुद से। <br /><br />बहुत ही साधा हुआ कमेन्ट है तुम्हारा, kudos !स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-37005607001083960822013-04-15T20:36:07.111+05:302013-04-15T20:36:07.111+05:30बिलकुल नारी को उसके वाजिब कानूनन अधिकार मिलने ही च...बिलकुल नारी को उसके वाजिब कानूनन अधिकार मिलने ही चाहिए Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-88579123665850178472013-04-15T19:33:15.871+05:302013-04-15T19:33:15.871+05:30'फेमेन' जैसी संस्था के आन्दोलन से हमारे ब्...'फेमेन' जैसी संस्था के आन्दोलन से हमारे ब्लॉगजगत के लोग क्यूँ आतंकित हैं ,समझ में नहीं आता. शायद जरूरत से ज्यादा ही डरे हुए हैं. किसी कवि ने ठीक ही कहा है, "दूर कहीं कोई दर्पण टूटे तड़प के मैं रह जाता हूँ " <br /><br />और इस तरह के प्रदर्शन हमारे देश में 2004 में ही हो चुके हैं . जब सेना द्वारा एक लड़की 'मनोरमा ' के कथित बलात्कार और ह्त्या के विरोध में मणिपुर की साठ वर्ष की उम्र तक की महिलाओं ने 'Mothers of Manorma' के नाम से आर्मी हेडक्वार्टर के सामने वस्त्रहीन होकर प्रदर्शन किया था .इस तरह के प्रदर्शन तब होते हैं जब अन्दर का आक्रोश ज्वालामुखी बन फूट पड़ता है. इस प्रदर्शन की कोई परिपाटी नहीं बनी न ही इसका नक़ल किया जाने लगा. किसी दूसरे प्रदेश की महिलाओं ने इस प्रदर्शन से प्रेरणा लेकर अपने कपड़े नहीं उतार फेंके. तो सुदूर देश की महिलाओं के इस तरह के प्रदर्शन से क्यूँ खौफ खा रहे हैं, लोग ? ऐसे प्रदर्शन देखा- देखी या महज fun या मनोरंजन के लिए नहीं किये जाते .<br /><br />जो लोग स्त्री देह को जेब से झांकते नोटों की तरह देखते हैं, उनकी नज़र का ही दोष है, कुत्सित नज़र है उनकी. तुमने सोदाहरण बता ही दिया है कि कभी ब्लाउज न पहनना बिलकुल सहजता से लिया जाता था. <br />मैं पहले भी कहीं इस घटना का जिक्र कर चुकी हूँ कि लेखिका शिवानी जब शान्तिनिकेतन में पढ़ती थीं. वहाँ घास काटने जो महिलायें आती थीं. वे ब्लाउज नहीं पहनती थीं. शिवानी और उनकी सहेलियों ने उन्हें ब्लाउज सिल कर दिए . उनलोगों ने पहने और फिर उतार कर उन्हें वापस कर दिया कि "ब्लाउज पहनने में शर्म आती है "तो यह तो नज़रों पर निर्भर करता हैं. <br /><br />लड़कियों को भी संपत्ति में हिस्सा देने की मांग , आज की जरूरत है. लड़कियों को भी पढने-लिखने ,आगे बढ़ने के सामान अवसर देना हर माता-पिता का कर्तव्य होना चाहिए. अगर माता-पिता की संपत्ति पर उनका भी हक़ हो तो दहेज़, घरेलु हिंसा जैसी कुरीतियाँ अपने आप ख़त्म हो जायेंगी क्यूंकि तब लड़की के पास भी खड़े होने की अपनी जमीन होगी (in literal meaning ) वे डगरे के बैंगन की तरह इधर से उधर नहीं लुढका दी जायेंगी. <br />इसमें माँ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. हर माँ की ये कोशिश होनी चाहिए कि उसकी बेटी को उस से बेहतर ज़िन्दगी मिले. rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-85833988829971271242013-04-15T18:28:11.466+05:302013-04-15T18:28:11.466+05:30आपका हार्दिक आभार राजेश जी !आपका हार्दिक आभार राजेश जी !स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-35413458727991495882013-04-15T18:22:38.997+05:302013-04-15T18:22:38.997+05:30आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ ...आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है । Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-29814739332252350592013-04-15T17:51:58.774+05:302013-04-15T17:51:58.774+05:30मैं तो यही कहूँगी, माँ-बाप लड़कियों को पढ़-लिखा कर...मैं तो यही कहूँगी, माँ-बाप लड़कियों को पढ़-लिखा कर इस काबिल बनाएँ, कि वो आत्मनिर्भर बने, उसके जीवन साथी के चुनाव में माता-पिता उसकी मदद करें, दहेज़ का बहिष्कार लड़की स्वयं करे, अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा ले और बुढापे में अपने माता-पिता की देख भाल की जिम्मेवारी भी ले। <br />स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-84090480429728228052013-04-15T17:32:34.316+05:302013-04-15T17:32:34.316+05:30धन्यवाद विकेश !
अच्छा लगा जान कर कि तुम्हें पसंद आ...धन्यवाद विकेश !<br />अच्छा लगा जान कर कि तुम्हें पसंद आया।स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.com