tag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post8282732654783346937..comments2024-03-13T13:33:28.274+05:30Comments on काव्य मंजूषा: आख़िर, जंगल का भी अपना, क़ानून तो होता ही है....!!स्वप्न मञ्जूषा http://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-27375757753626594022010-04-30T06:26:34.096+05:302010-04-30T06:26:34.096+05:30मिलावट इस क़दर शामिल हुई है जिंदगानी में,
कि खालिस...मिलावट इस क़दर शामिल हुई है जिंदगानी में,<br />कि खालिस दूध से पेचिश है, घी से बाँस आती है,<br /><br />हमें भी गर्क कर देनी पड़ीं, सच्चाइयां अपनी<br />कहाँ अब अहले-दुनिया को खुलूसी रास आती हैmanuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-48017229222500307012010-04-30T06:26:34.095+05:302010-04-30T06:26:34.095+05:30मिलावट इस क़दर शामिल हुई है जिंदगानी में,
कि खालिस...मिलावट इस क़दर शामिल हुई है जिंदगानी में,<br />कि खालिस दूध से पेचिश है, घी से बाँस आती है,<br /><br />हमें भी गर्क कर देनी पड़ीं, सच्चाइयां अपनी<br />कहाँ अब अहले-दुनिया को खुलूसी रास आती हैmanuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-61443024942011763572010-04-30T06:23:12.200+05:302010-04-30T06:23:12.200+05:30सच्चाई जाहिर होकर ही रहती है।सच्चाई जाहिर होकर ही रहती है।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-73993963678669739462010-04-30T02:00:17.573+05:302010-04-30T02:00:17.573+05:30junjal ka kanoon..aacha lagajunjal ka kanoon..aacha lagaTejhttps://www.blogger.com/profile/07239419875368579533noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-26830571107512017982010-04-30T01:06:36.424+05:302010-04-30T01:06:36.424+05:30@ टिके रहने के लिए...
अब, वर्चस्व तो बचाना है न ...@ टिके रहने के लिए... <br />अब, वर्चस्व तो बचाना है न ! <br />--------- यह तो वह खूब जानते हैं और इसीलिये अच्छे-अच्छे शब्दों पर <br />करते हैं हमला ! अपनी कुंठा को ढंकने के लिए ! 'वर्चस्व' को सकुंठ बनाए <br />रखने के लिए ! पूरे माहौल को अशांत बनाने के बाद 'शान्ति' का छद्म-जाप <br />कमो-बेश ऐसी ही कुचेष्टा की अभिव्यक्ति है ! 'शान्ति' शब्द को भी लज्जा आ <br />रही होगी , अयोग्य प्रयोक्ता के हांथों प्रयुक्त होकर ! <br />@ घबराते हैं<br />कहीं चीड़ों के झुरमुट में<br />चाँदनी न बिखर जाए,<br />और वो साँप सी रेंगती <br />झूठी ईमानदारी की पटरियाँ,<br />जिनपर<br />काहिली के मंसूबे<br />सफ़र करते हैं,<br />अपने मकसद और मुक़ाम पर<br />पहुँचने से पहले<br />पकड़े न जाएँ, <br />----------- भाव स्थिति ने अद्भुत शब्द-संघति अख्तियार की है ! और <br />'' वो साँप सी रेंगती / झूठी ईमानदारी की पटरियाँ '' - क्या खूबसूरत चयन <br />है ! तन्मय-प्रवाह में ही ऐसी पंक्तियाँ निकलती हैं ! आपके द्वारा लिखी गयी <br />बेहतरीन कविताओं में रखता हूँ इस कविता को ! <br />................ आभार !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-3774052378615035482010-04-30T00:14:55.020+05:302010-04-30T00:14:55.020+05:30सुन्दर रचना !सुन्दर रचना !nilesh mathurhttps://www.blogger.com/profile/15049539649156739254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-60016290440031810972010-04-29T22:21:32.390+05:302010-04-29T22:21:32.390+05:30अपने मकसद और मुक़ाम पर
पहुँचने से पहले
पकड़े न जाए...अपने मकसद और मुक़ाम पर<br />पहुँचने से पहले<br />पकड़े न जाएँ, <br />इसलिए, <br />सबकी नज़रें बचाकर <br />लीपते हैं दंभ से,<br />ज्ञान की ज़मीन <br />और लगाते हैं चाटुकारिता <br />के रंग-ओ-रोगन<br /><br />क्या बात है!!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-82479252130219537072010-04-29T15:28:37.831+05:302010-04-29T15:28:37.831+05:30और तब ग़ुलाम
हुई कुंठाएं,
चेहरे बदल-बदल कर
मोहने ...और तब ग़ुलाम <br />हुई कुंठाएं,<br />चेहरे बदल-बदल कर<br />मोहने की कोशिश में <br />लग जातीं हैं, <br /><br />बहुत गहरी बात कह दी है आज की रचना में....बधाईसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-71985132537326942662010-04-29T15:23:32.704+05:302010-04-29T15:23:32.704+05:30सबकी नज़रें बचाकर
लीपते हैं दंभ से,
ज्ञान की ज़मी...सबकी नज़रें बचाकर <br />लीपते हैं दंभ से,<br />ज्ञान की ज़मीन <br />क्या बात है अदा जी. बहुत सुन्दर.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-8664381920581690922010-04-29T14:57:34.838+05:302010-04-29T14:57:34.838+05:30अब तो चलता ही जंगल का कानून है,(??मै)इंसानो का कान...अब तो चलता ही जंगल का कानून है,(??मै)इंसानो का कानून कहा बचा है. <br />बहुत सुंदर लिखा धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-18900451585398068852010-04-29T12:43:15.457+05:302010-04-29T12:43:15.457+05:30बहुत सुन्दर रचना! शुभकामनाएं!बहुत सुन्दर रचना! शुभकामनाएं!शिवम् मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/07241309587790633372noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-87636649208103478442010-04-29T10:14:48.611+05:302010-04-29T10:14:48.611+05:30जंगल का भी अपना, क़ानून तो होता ही है....!!जंगल का भी अपना, क़ानून तो होता ही है....!!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-52621273856932306162010-04-29T09:49:34.435+05:302010-04-29T09:49:34.435+05:30टिके रहने के लिए...
अब, वर्चस्व तो बचाना है न !
...टिके रहने के लिए... <br />अब, वर्चस्व तो बचाना है न !<br /><br />आपने एकदम सही लिखा है ... वैसे सच तो यह है कि हर तरफ केवल वर्चस्व बचाने की जंग चल रही है !Indranil Bhattacharjee ........."सैल"https://www.blogger.com/profile/01082708936301730526noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-46176527677808397512010-04-29T09:42:03.829+05:302010-04-29T09:42:03.829+05:30सीधी सच्ची बातें,
जंगल जैसे लोग
झेल नहीं पाते,
घब...सीधी सच्ची बातें, <br />जंगल जैसे लोग<br />झेल नहीं पाते,<br />घबराते हैं<br />कहीं चीड़ों के झुरमुट में<br />चाँदनी न बिखर जाए,<br />और वो साँप सी रेंगती <br />झूठी ईमानदारी की पटरियाँ,<br />जिनपर<br />काहिली के मंसूबे<br />सफ़र करते हैं,<br /><br /><br />बहुत सुन्दर रचना!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-85067490479352923082010-04-29T09:32:10.295+05:302010-04-29T09:32:10.295+05:30बहुत ही सधे लहजे में सटीक बात कही गई है. बहुत शुभक...बहुत ही सधे लहजे में सटीक बात कही गई है. बहुत शुभकामनाएं.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-72569090173989012472010-04-29T09:32:10.296+05:302010-04-29T09:32:10.296+05:30दुखी होऊगे, सरल हिय, बसहुँ त्रिभंगी लाल ।दुखी होऊगे, सरल हिय, बसहुँ त्रिभंगी लाल ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-33534488859511974272010-04-29T09:31:36.095+05:302010-04-29T09:31:36.095+05:30बिल्कुल सही ......जंगल का अपना भी कानून होता है .....बिल्कुल सही ......जंगल का अपना भी कानून होता है ......बेहतरीन रचनाDevhttps://www.blogger.com/profile/05009376638678868909noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-67846459160859732452010-04-29T09:25:47.761+05:302010-04-29T09:25:47.761+05:30behtar haibehtar haiVinayhttps://www.blogger.com/profile/08734830206267994994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-75828650023419450712010-04-29T09:21:41.806+05:302010-04-29T09:21:41.806+05:30जंगल जंगल बात चली है, पता चला है,
अरे,बेशर्मी के ब...जंगल जंगल बात चली है, पता चला है,<br />अरे,बेशर्मी के बुरके पहनकर, <br />ब्लॉगिंग के Fool खिले हैं,Fool खिले हैं...<br /><br />काहे का जंगल, काहे का समाज और काहे के क़ानून...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-35411342912558173972010-04-29T09:05:13.912+05:302010-04-29T09:05:13.912+05:30अच्छी मानवीय सोच ,संवेदनाओं और संघर्ष से उपजे विचा...अच्छी मानवीय सोच ,संवेदनाओं और संघर्ष से उपजे विचारों को कविता के रूप में श्रेष्ठ प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / आज नैतिकता और मानवता को बचाने के लिए एकजुट होने की जरूरत है /आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /honesty project democracyhttps://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-44552827333977171162010-04-29T07:11:09.130+05:302010-04-29T07:11:09.130+05:30जंगल का भी अपना, क़ानून तो होता ही है....!!
जंगल क...जंगल का भी अपना, क़ानून तो होता ही है....!!<br /><br />जंगल का कानून शक्ति पर आधारित होता है।<br />जितने भयभीत लोग,उतना बड़ा गुट,<br />असुरक्षा की भावना से ग्रसित्।<br /><br />बहुत अच्छी कविता बहनाब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-61623612108372969082010-04-29T06:59:59.816+05:302010-04-29T06:59:59.816+05:30"अपने मकसद और मुक़ाम पर
पहुँचने से पहले
पकड़े..."अपने मकसद और मुक़ाम पर<br />पहुँचने से पहले<br />पकड़े न जाएँ, <br />इसलिए, <br />सबकी नज़रें बचाकर <br />लीपते हैं दंभ से,<br />ज्ञान की ज़मीन"<br /><br />सच्चाई जाहिर होकर ही रहती है।<br />आजकल के माहौल को बयां करती प्रस्तुति।<br />और जंगल के कानून का पालन करने वालों को जब कभी उनकी भाषा में प्रत्युत्तर मिलेगा, वही सभ्य कानून की दुहाई देते फ़िरेंगे।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-76709819865923901822010-04-29T06:34:23.201+05:302010-04-29T06:34:23.201+05:30Sundar kavitaa ada ji,
seedhee sachchee baat
jan...Sundar kavitaa ada ji, <br />seedhee sachchee baat <br />jangal jaise log jhel nahee paate... waah !!पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-33949697765516609782010-04-29T05:56:16.389+05:302010-04-29T05:56:16.389+05:30शानदार और सटीक बात कह दी!!शानदार और सटीक बात कह दी!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-32700185638702402462010-04-29T05:53:27.034+05:302010-04-29T05:53:27.034+05:30ये बहुत सही कहा कि सीधी सच्ची बाते लोग झेल नहीं पा...ये बहुत सही कहा कि सीधी सच्ची बाते लोग झेल नहीं पाते ...<br />सीधी सच्ची बातें ही क्यूँ ....सीधे सच्चे लोग भी कहाँ ....जुट जाते हैं सब उनकी स्वाभाविकता का गला घोंटने ...<br />करके बर्बाद फूलों सा कोमल आशियाँ<br />पूछते हैं लोग ...<br />बदल गया है क्यों मौसम का मिजाज़ ....!!<br /><br />जंगल का ही तो कानून होता है ....सभ्यताओं का बचा कहाँ है ...आगे बढ़ने की होड़ में लाशें बिछाये जाते हैं और उन लाशों की सीढियों पर कदम रखा कर बढ़ते जाते हैं ....वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com