tag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post6650295321507282633..comments2024-03-13T13:33:28.274+05:30Comments on काव्य मंजूषा: कोई तो बात है, जो हिंदुत्व बहुत कम अपने पंख फैला पाया ...स्वप्न मञ्जूषा http://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-61803904472731141102012-07-28T23:31:42.754+05:302012-07-28T23:31:42.754+05:30जिसके हाथ में होगी लाठी..भैंस वही ले जाएगा..
अभी...जिसके हाथ में होगी लाठी..भैंस वही ले जाएगा..<br /><br /><br />अभी वो वक़्त आया नहीं है..<br /><br />पर आना बाकी है...manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-7934858006590166912012-07-28T23:08:10.256+05:302012-07-28T23:08:10.256+05:30अदा जी को यात्रा के लिए शुभकामनायें | :)अदा जी को यात्रा के लिए शुभकामनायें | :)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-45921587446369455302012-07-28T19:50:03.504+05:302012-07-28T19:50:03.504+05:30सहमति के लिए आभार सुज्ञ जी| अदाजी के कहने के पीछे ...सहमति के लिए आभार सुज्ञ जी| अदाजी के कहने के पीछे भावना वही है survival of the fittest सिद्धांत| और इनकी चिंता अपने धर्म से इनके जूडाव के ही कारण है, मेरा विशवास है| खैर, अभी हम इस टोपिक पर ज्यादा नहीं कहते क्योंकि अदाजी को दो महीने के लिए यात्रा पर निकलने की तैयारी करनी होगी| पुनर्वापिसी पर आवश्यक हुआ तो अपने अपने विचार शेयर करेंगे और एक दुसरे से कुछ सीखेंगे|संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-76097756009949166842012-07-28T17:27:22.344+05:302012-07-28T17:27:22.344+05:30धर्म के नाम पर क्या कह पायेंगे हम भला..?
मसल-ऐ-न...धर्म के नाम पर क्या कह पायेंगे हम भला..?<br /><br /><br />मसल-ऐ-नाज़ुक पे कब कुछ बोलना आया हमें<br />दीन की हो बात तो खामोश हो जाते हैं हम<br /><br />:)manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-34432340190055942702012-07-28T16:17:48.981+05:302012-07-28T16:17:48.981+05:30संजय जी से सहमत!! उनके कमेंट विस्तार की प्रतीक्षा ...संजय जी से सहमत!! उनके कमेंट विस्तार की प्रतीक्षा है।<br />हिंदुत्व में येन केन पंख फैलाने की अवधारणा नहीं रही।<br />हिंदुत्व कर्मकाण्ड़ से अधिक सिद्धांत आस्था को बल देता है।<br />कुछ इसी तरह के बाहरी प्रभाव से कर्मकाण्ड प्रचलित अवश्य हुए पर जैसे जैसे कुरीति लगते गए दूर होते जा रहे है।<br />मूल सिद्धांत तो प्रदर्शन से अधिक आन्तरिक परिशुद्धता को प्रमुखता देते है।<br />मूल सिद्धांत तो सर गणना से अधिक गुणवत्ता में मानते है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-72243449208551589002012-07-28T01:39:14.842+05:302012-07-28T01:39:14.842+05:30प्रवीण जी,
वक्त के साथ चलना बुद्धिमानी है...अगर आज...प्रवीण जी,<br />वक्त के साथ चलना बुद्धिमानी है...अगर आज संख्या का ही चलन है तो वही करना होगा...<br />वर्ना आप करें की ना करें, लोग तो यही कर रहे हैं...और एक समय ऐसा आएगा कि इनकी ही तूती बोलेगी..<br />आभारस्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-32032183369748017372012-07-28T01:35:54.303+05:302012-07-28T01:35:54.303+05:30धर्म का राज तो होना ही चाहिए...वर्ना अधर्म का हो ज...धर्म का राज तो होना ही चाहिए...वर्ना अधर्म का हो जाएगा :):)<br />आपकी बात सही है, हिन्दू धर्म सबसे पुराना धर्म है और इसकी कई मान्यताएं शायद उस ज़माने के लिए सही रही होंगी, लेकिन आज के लिए वो उतनी सही नहीं हैं...आपने बैंक का उदाहरण बिलकुल सही दिया है...आपका बैंक पुराना है, आपकी कार्यप्रणाली पुरानी है, लेकिन पुराने बैंकों की कार्यप्रणाली में अगर उतनी कारगर नहीं है और ग्राहक खुश नहीं है, तो वो अपना अकाउंट दुसरे बैंक में ले जाएगा...आपको नहीं लगता कि बैंक को अपनी कार्यप्रणाली में कुछ सुधार लाना चाहिए ताकि आपके ग्राहक दुसरे बैंक में न जाएँ.....ग्राहकों को खोते जाना, बैंक कि सफलता तो नहीं मानी जायेगी, और अगर यही हाल काफी दिनों तक चला तो बैंक ही बैंकरप्त हो जाएगा...इस दिशा में कुछ नहीं करना बैंक का अपने ग्राहकों के प्रति विरक्ति दिखाता है, बैंक को ऐसा कोई काम ज़रूर करना चाहिए जिससे उसके इतने सालों से समर्पित रहे ग्राहकों को लगे, कि बैंक उनके साथ है...<br />ठीक उसी तरह, हिन्दू धर्म में भी तेज़ी से सुधार की आवश्यकता है....<br />हमें committed, organised & well equipped होना ही होगा वर्ना इसके लुप्त होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा...<br />आपका आभार..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-64655359623498550112012-07-27T21:24:11.949+05:302012-07-27T21:24:11.949+05:30संख्या संस्कृति से अधिक ऊँचा बोलती है, सब संख्या ब...संख्या संस्कृति से अधिक ऊँचा बोलती है, सब संख्या बढ़ाने के लिये है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-24356335342453675282012-07-27T09:14:33.085+05:302012-07-27T09:14:33.085+05:30बातों से सहमत या सहमत हुआ जा सकता है, आपकी चिंताओं...बातों से सहमत या सहमत हुआ जा सकता है, आपकी चिंताओं से नहीं| मेरी समझ में ये पंख फैलाने और विस्तार पाने\करने वाली बात सीधे से इस बात से जुडी है कि धर्म को किस भावना से देखा जाता है| एक जीवन पद्धति के रूप में या एक एम्पायर की तरह| एक उदाहरण देकर कहने की कोशिश करता हूँ - आज का युग तो वैसे भी आर्थिक युग है, उस नजरिये से देखेंगे तो भारत के कई बैंक लगभग सौ साल पुराने हैं| उनके मुकाबले जो बैंक पिछले दस बीस साल में बाजार में आये हैं, उन्होंने aggressive marketing, market surveys, selection of staff on the sole basis of merit, सिर्फ लाभ के आधार पर ग्राहक वर्ग को टारगेट करना जैसे बहुत से औजार हैं जिनके बल पर उन्होंने मार्केट में penetrate कर लिया है| अब पुराने बैंको का और नए बैंकों का तुलनात्मक अध्ययन तो होगा ही, उसे कोई रोक नहीं सकता लेकिन दोनों की कार्यशैली, कार्यपद्धति में अंतर होने के कारण ये फर्क रहेंगे ही| स्वाभाविक है नए बैंकों ने पुराने बैंकों की कमियों से बहुत कुछ सीखा है और शुरू से ही उनकी नीतियां उसी हिसाब से तय होती हैं|<br />धर्म के साथ भी मुझे ऐसा ही लगता है| हिंदू धर्म के मुकाबले अन्य धर्म स्वाभाविक रूप से ज्यादा प्रैक्टिकल हैं, कुछ दिन पहले एक अमेरिकन लेखक की किताब पढ़ रहा था(हिन्दी में अनुवादित), उन्होंने भी व्यवहारिकता वाली बात कही थी जबकि वो खुद हिंदू धर्म से प्रभावित होकर जीवन के उत्तरार्ध में भारत आकर बस गए थे|<br />हम जितना अन्य धर्मों के बारे में जानते हैं, उससे कहीं ज्यादा अपने धर्म को जानते हैं और इसी नाते हमें अपने धर्म की कमिया भी ज्यादा दिखती हैं| अब ये भी हमारे धर्म की विशेषता है कि हम और आप इन कमियों की खुलकर बात भी कर सकते हैं, उनपर बहस भी कर सकते हैं और जो समयानुकूल न लगे, उन कुरीतियों को त्याग भी सकते हैं और त्यागते भी रहे हैं| मुझे नहीं लगता कि अन्य धर्मों में भी यह सुविधा या लिबरटी है| <br />हिंदू धर्म के अनुसार आत्मा का शाश्वत चरित्र और इसलिए चौरासी लाख योनिया, पुनर्जन्म ध्योरी, कर्मफल थ्योरी और पश्चिमी धर्मों के अनुसार 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' थ्योरी भी शायद हम लोगों की सोच में अंतर ले आती है|<br />इसमें कोई दोराय नहीं कि कमियां हम में हैं, बात ये है कि कमियां सबमें होती हैं लेकिन बाकी मानते नहीं हैं| अपने उद्देश्य के लिए दुसरे धर्म हम लोगों से ज्यादा committed, organised & well equipped हैं| <br />अपनी सोच सीमित है, क्योंकि अपना exposure भी सीमित ही है, देश और देशी तक सीमित:) इत्ता सारा लिखा, फिर भी अभी अधूरा लग रहा है| बैंक जाना है, नहीं तो और भी बरसता, हाँ नहीं तो...!!<br />सरस्वती चंद्र चंगे हैं:)संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-18507971351841692542012-07-27T02:23:36.958+05:302012-07-27T02:23:36.958+05:30धन्यवाद !धन्यवाद !स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-33638110310290085822012-07-27T02:23:21.505+05:302012-07-27T02:23:21.505+05:30शुक्रिया अनु जी..!शुक्रिया अनु जी..!स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-25770476150087825742012-07-27T02:21:39.142+05:302012-07-27T02:21:39.142+05:30दीपक जी,
मतलब तो है कटने से, कोई प्रेम से हमारी जड...दीपक जी,<br />मतलब तो है कटने से, कोई प्रेम से हमारी जडें काट रहा है कोई झटके से..बाक़ी का साधे सत्यानास हमारे तथाकथित प्रकांड विद्वानों ने जाति का पलीता लगा कर कर ही दिया है..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-35261356491715483092012-07-27T02:17:47.125+05:302012-07-27T02:17:47.125+05:30निशांत जी,
शतप्रतिशत सही बात कही आपने..निशांत जी,<br />शतप्रतिशत सही बात कही आपने..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-86266754614364953162012-07-27T02:16:53.800+05:302012-07-27T02:16:53.800+05:30रमाकांत जी,
जिसे आप सहिष्णुता कह रहे हैं...उसे अकर...रमाकांत जी,<br />जिसे आप सहिष्णुता कह रहे हैं...उसे अकर्मण्यता कहते हैं...हिन्दुस्तानी परले दर्जे के अहमक है..<br />हम बस ये मुगालता पाले हुए हैं कि हम सर्वोपरि हैं...जबकि ऐसी कोई बात नहीं है..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-16374437675532355542012-07-26T20:32:57.918+05:302012-07-26T20:32:57.918+05:30ईसाई प्रचारक एक माफिया नेक्सस के रूप में अपने काम ...ईसाई प्रचारक एक माफिया नेक्सस के रूप में अपने काम को अंजाम देते हैं. वे हिन्दुओं के प्रतीकों को अपना रहे हैं ताकि बड़े धर्मपरिवर्तन में खतरा बन रहे अंतरों को ख़त्म किया जा सके.<br />ईसाइयों में पता भी नहीं चलता कि एस शिवराम 'शाजी शिवराम' है, और पी रामचंद्र 'पीटर रामचंद्र' है.<br />बेचारे दुखियों की सहायता करके उन्हें ईसाइयत में खींचने का एक वाकया मेरा अन्खोंदेखा है. एक सभा में भगवा चोगा पहने एक डॉ. और धर्म प्रचारक उपस्थित ग्रामीणों और आदिवासियों को बड़े प्रेम से देखकर बहुत अच्छी दवाई और ईसा मसीह का चित्र देता है, लेकिन अंत में वह सबसे कहता है कि दवा तब तक असर नहीं करेगी जब तक ईसा का चित्र स्थापित करके उनसे दवा में 'ईश्वरीय' शक्ति ना माँगी जाए, अन्यथा दवा से कोई ठीक नहीं होगा. दवा से ठीक तो सबको होना ही है, इसी बहाने वे ईसाइयत को प्रभावकारी मानने लगते हैं.<br />यह सब बहुत बड़ा पाखण्ड और धोखा है, लेकिन मिशनरियों ने लोगों की कायापलट की है. उनके जीवन स्तर में बड़ा परिवर्तन आया है. <br />दूसरी ओर, हिन्दुजन धर्म के भय में आकर शनि का तेल मांगनेवालों और यहाँ तक कि नकली हिजड़ों से डरकर भी अपनी जेब ढीली कर देंगे लेकिन वास्तविक दुखी और निर्धनों की सहायता नहीं करते.Nishanthttp://hindizen.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-64274474632927746922012-07-26T18:34:14.505+05:302012-07-26T18:34:14.505+05:30हिन्दू और हिंदुत्व की सहिष्णुता ही हमें विश्व मे...हिन्दू और हिंदुत्व की सहिष्णुता ही हमें विश्व में सर्वोपरी और शिखर पर बनाता है . और सदैव अति के कारन शायद हमारी अस्मिता पर चोट लगती तब मन आहत होता है . तब यही विचार जागृत होता हैRamakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-84900503841374406092012-07-26T17:48:53.314+05:302012-07-26T17:48:53.314+05:30ईसाई धर्म प्रचारक प्रेम के रस्ते ही आगे बढते रहे, ...ईसाई धर्म प्रचारक प्रेम के रस्ते ही आगे बढते रहे, जबकि मुस्लिम तलवार की जोर पर.<br /><br />और हिंदू धर्म <br /><br />वो अपनी पुरानी मान्याताओं, परम्पराओं पर ही कायम रहा. वैसे हम लोग जिस पूजा पद्धति की बात कर रहे हैं वो सनातन धर्म है.. उसे बस जाति प्रथा ने ही चौपट किया है.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-20913972381496243082012-07-26T15:08:49.965+05:302012-07-26T15:08:49.965+05:30हिन्दू धर्मगुरुओं की ये जिम्मेदारी बनती है, कि वो ...हिन्दू धर्मगुरुओं की ये जिम्मेदारी बनती है, कि वो हिन्दू घर्म की अच्छाइयों को सरल रूप में दुनिया के सामने लायें, उनका प्रचार करें, और थोथी मान्यताओं को तिलांजलि देकर, हिंदुत्व का मार्ग प्रशस्त करें। <br /><br />अच्छा लगा ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-43731120951191633062012-07-26T11:55:25.361+05:302012-07-26T11:55:25.361+05:30बेहद सशक्त लेखन.....
और गाना.......
चोट के बाद मरह...बेहद सशक्त लेखन.....<br />और गाना.......<br />चोट के बाद मरहम की तरह लगा ...<br /><br />अनुANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.com