tag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post2455905408562600054..comments2024-03-13T13:33:28.274+05:30Comments on काव्य मंजूषा: जाकी पाँव न फटी बिबाई , वो क्या जाने पीर पराई....स्वप्न मञ्जूषा http://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-77536521161278709882010-10-27T21:40:48.608+05:302010-10-27T21:40:48.608+05:30"आप क्या जाने परिवार क्या है ....?? उसकी समस्..."आप क्या जाने परिवार क्या है ....?? उसकी समस्याएं क्या हैं....?? जूझते तो हम जैसे लोग ही हैं ....और श्रृष्टि भी हम ही चला रहे हैं आप नहीं.....इसलिए मुझे पूरा विश्वास है ईश्वर के ज्यादा करीब हम ही हैं आप नहीं..."<br />मास्टर स्ट्रोक था जी।<br /><br />"लोग कह सकते हैं, संवेदनशील व्यक्ति इस बात को समझ सकता है ...शायद सच हो लेकिन समझना और महसूस करना दो अलग बातें हैं..."<br />सहमत हैं जी। ’अंदाजा लगाना और भोगना’ दोनों में अंतर है।<br />बहुत अच्छा लेख लगा आपका यह, फ़िर से।<br /><br />आजकल शायद बहुत मसरूफ़ हैं आप, नई प्रस्तुति बहुत इंतजार करवाती हैं, या फ़िर कोई सरप्राईज़ देने का इरादा है?<br /><br />आभार स्वीकार करें।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-67552395852030395252010-10-27T14:26:29.326+05:302010-10-27T14:26:29.326+05:30पादरी सत्ता मे त्याग की बातें ये सब ैसी ही बातें ह...पादरी सत्ता मे त्याग की बातें ये सब ैसी ही बातें हैं जैसे राजनीति मे ईमानदारी. <br />--<br /><br />इस पोस्ट का ९०% हिस्सा अापने मिशन के फादर सिस्टर्स पर खर्च किया, स्त्री पीड़ा पर सिर्फ १०%.<br /> <br /> माँ अपने बच्चों के लिये तमाम दर्द सहती है, तभी तो उनका स्थान सर्वोच्च होता है. <br />उपरोक्त कहावत से तो सभी परिचित हैं... फिर भी मानव समाज मे संवेदना का महत्व है, सहानुभूति अौषधि का काम करती है.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-27902522383029326872010-10-27T09:26:07.682+05:302010-10-27T09:26:07.682+05:30:)
पिछली बार भी पढा था पर टिप्पणी देने से बच निक...:) <br /><br />पिछली बार भी पढा था पर टिप्पणी देने से बच निकला ! लेकिन अबकी बार...सबसे पहले आपके आलेख के पहले हिस्से पर ...क्या आपको नहीं लगता कि 'मिशन' एक मल्टीनेशनल कम्पनी है जो सेवा और आध्यात्म परोसने के नाम से दुनिया की आबादी को एक खास सांचे में ढालने की कोशिश कर रही है ? किसी मल्टीनेशनल कम्पनी के ओहदेदारों की तरह से व्यवहार करते फादर लाकडा को महसूस कीजिये सारे भ्रम मिट जायेंगे ! अब ये मत पूछियेगा कि इस तरह के इंवेस्ट्मेंट के नतीजे क्या निकलेंगे / फायदे क्या होंगे ? उस दिन आपने अंग्रेजी पर एक आलेख लिखा...अगर वो एक किस्म की गुलामी है तो फिर इस कम्पनी के रास्ते आ रही गुलामी के बारे में क्या ख्याल है ! एक स्थायी गुलामी , एक नयी तरह का उपनिवेशवाद ! <br />अब आपके आलेख का दूसरा हिस्सा ...देखिये 'पीर' का सम्बन्ध अनुभूति से है वर्ना पीर कुछ भी नहीं ! ये तो ठीक है कि 'निज' अनुभूति का विशिष्ट महत्व है पर दूसरों की अनुभूति को सिरे से खारिज़ भी नही कर सकते ज़रा इस मामले में मां और नवजात शिशु को ही लें !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-268678249403494052010-10-26T22:31:48.261+05:302010-10-26T22:31:48.261+05:30स्मृति ही भक्ति की पराकाष्ठा है, यदि गाढ़ापन लिये ...स्मृति ही भक्ति की पराकाष्ठा है, यदि गाढ़ापन लिये हो। बड़ी सुन्दर पोस्ट।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-78226133303606802152010-10-26T22:01:30.069+05:302010-10-26T22:01:30.069+05:30आखिरी पाराग्राफ तक तो सब कुछ सही था लेकिन आखिरी मे...आखिरी पाराग्राफ तक तो सब कुछ सही था लेकिन आखिरी में अचानक से यह नारी शक्ति कहाँ से आ गयी ? पूरे लेख और वाकये से बिल्कुल अलग, कृपया इसे समझाने का कष्ट करेंगी.....<br /><br />खैर कुल मिलकर अच्छा लगा पढना...<br />कभी कभी मेरे ब्लॉग का भी रुख करें...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-20179559851559643202010-10-26T20:22:04.804+05:302010-10-26T20:22:04.804+05:307/10
पठनीय / मौलिक / विचारणीय
बहुत सुन्दर पोस्...7/10 <br /><br />पठनीय / मौलिक / विचारणीय <br />बहुत सुन्दर पोस्ट <br />दो अलग-अलग विषय मिक्स क्यूँ ?<br />लास्ट पैराग्राफ अलग विषय है, उस पर <br />एक दूसरी सुन्दर पोस्ट हो सकती थी.उस्ताद जीhttps://www.blogger.com/profile/03230688096212551393noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-85223490622577268642010-10-26T19:44:13.247+05:302010-10-26T19:44:13.247+05:30सौ बातों की एक बात लिख ही दी आपने .. जाकी पाँव न फ...सौ बातों की एक बात लिख ही दी आपने .. जाकी पाँव न फटी बिबाई , वो क्या जाने पीर पराई !!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-76072497750083661722010-10-26T18:09:27.033+05:302010-10-26T18:09:27.033+05:30आप हमेशा एक बात कहती हैं कि "कोई कितना भी कहे...आप हमेशा एक बात कहती हैं कि "कोई कितना भी कहे कि 'नारीगत' समस्या हर नारी समझ सकती है, तो वो बिलकुल ग़लत है।" और आप गलत हैं क्युकी अगर आपके हिसाब से चला जाये तो<br />माता पिता बच्चो कि समस्या नहीं समझ सकते और बच्चे माता पिता कि<br />पति पत्नी कि समस्या नहीं समझ सकता , पत्नी पति कि<br />अमीर गरीब कि समस्या नहीं समझ सकता , गरीब अमीर कि<br /><br /><br />अदा जी<br />हम सब एक समाज का हिसा हैं । अपनी अपनी पीड़ा हम भोगते हैं और दुसरो कि पीड़ा को समझते हैं । भोगने और समझने के अंतर को केवल मनुष्य ही नहीं जानवर भी समझते हैं । नारी कि पीड़ा , यानी प्रसव इसको एक माँ भोगती हैं लेकिन उस माँ से जुदा हर व्यक्ति इस को समझता हैं । डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर कई बार अविवाहित भी होती हैं । क्या आप का मानना हैं कि हर गाइनोकोल्गिस्त को विवाहिता होना चाहिये ताकि वो प्रसव कि पीड़ा को समझ सके या किसी भी पुरुष को डिलीवरी कराने का अधिकार ही नहीं होना चाहिये ।<br /><br />मिशनरी मे बहुत से तरह के लोग होते हैं और वो सब इंसान हैं । वो अपनी मर्जी से वहाँ नहीं होते । मे जिस स्कूल मे पढ़ती थी वहाँ कई "brother " नौकरी के कार्यकाल के बाद brother hood छोड़ देते थे । जैसा कि आपने कहा हैं क्युकी आप उनकी जगह नहीं हैं आप उनकी पीड़ा और त्रासदी को नहीं समझ सकतीरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6781060934347160913.post-43120030988749863512010-10-26T17:38:31.685+05:302010-10-26T17:38:31.685+05:30जाकी पाँव न फटी बिबाई , वो क्या जाने पीर पराई
sah...जाकी पाँव न फटी बिबाई , वो क्या जाने पीर पराई<br /><br />sahi kaha aapne, hum kisi ki peer ko nahin samajh sakteसंजय कुमार चौरसियाhttps://www.blogger.com/profile/06844178233743353853noreply@blogger.com