Saturday, December 7, 2013

कुछ ख़याल !

ये रोज़-रोज़ की प्रार्थना
हर रविवार का सत्संग 
और हर दिन तम्बाखू खाना  
आदत में ही शुमार हैं 
एक रह जाए तो मन को कष्ट होता है
और दूसरे से तन को  । 
आदत कैसी भी हो 
आदत ही होती है
अगर शान्ति चाहिए तो 
आदत से बाहर निकल कर 
कुछ सृजन करो 
शब्द अपने में कुछ नहीं होते 
उनको जीवित तुम करते हो 
अगर ऐसा नहीं होता तो 
'मरा' 'मरा' कहने वाला 
भक्त क्यूँ कहाता  ?
भगवान् भी तभी तक है 
जब तक भक्त रहता है 
और 
गंगा भी तभी तक गंगा है 
जब तक वो सागर में नहीं समाती .....

10 comments:

  1. शब्द अपने में कुछ नहीं होते
    उनको जीवित तुम करते हो
    ..बिलकुल सच्ची बात ..गहरे अर्थ लिए रचना

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  2. भगवान् भी तभी तक है
    जब तक भक्त रहता है
    और
    गंगा भी तभी तक गंगा है
    जब तक वो सागर में नहीं समाती ..
    बहुत सुदर !
    नई पोस्ट नेता चरित्रं
    नई पोस्ट अनुभूति

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  3. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने..

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  4. भगवान् भी तभी तक है
    जब तक भक्त रहता है
    और
    गंगा भी तभी तक गंगा है
    जब तक वो सागर में नहीं समाती ....

    AKAATY SATY

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  5. बहते रहना, सहते रहना,
    सागर में जाकर मिल जाना।
    शब्द समझना, कहते रहना,
    अपना अपना धर्म निभाना।

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