Tuesday, October 18, 2011

सीलन....


सरलता की धरती पर,
झूठ का हल,
छल के हज़ारों बीज बो देता है
निष्कपटता की क्यारियों में,
अविश्वास के फूल खिला देता है
धूर्तता का पानी ऐसी सिंचाई कर जाता है,
कि जीवन में बस,
इक सीलन सी रह जाती है...!!
पर दूर कहीं
मन के आकाश में
प्रेम का सूरज
अपनी गरिमा की ऊष्मा से
वो सीलन उड़ा ले जाता है...
और समय की पपड़ी के साथ 
कुछ...
बदनुमा धब्बे भी मिट ही जाते हैं...